जब बात आती है न्यूज़ीलैंड, दक्षिणी गोलार्ध का एक शांत देश जहाँ प्रकृति और समुदाय एक साथ बसते हैं। यह एक ऐसा देश है जहाँ भारतीय समुदाय, खासकर ब्राह्मणबाड़िया समुदाय, बंगाल के पूर्वी हिस्से से आए लोग जो अब विश्वभर में बिखरे हुए हैं, अपनी पहचान बनाए रख रहे हैं। यहाँ के लोग न सिर्फ नौकरी के लिए गए हैं, बल्कि अपनी संस्कृति, त्योहार और आपसी जुड़ाव को भी यहाँ बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं।
न्यूज़ीलैंड में रहने वाले कई ब्राह्मणबाड़िया लोग अपने बच्चों को हिंदी और बांग्ला दोनों सिखाते हैं। ऑकलैंड और क्राइस्टचर्च में छोटे-छोटे समूह बनते हैं, जहाँ दिवाली के दिन लोग एक साथ आते हैं, घर का बना खाना लेकर आते हैं, और अपनी जड़ों को याद करते हैं। कुछ लोग यहाँ नौकरी करते हैं, कुछ डॉक्टर हैं, कुछ टीचर, और कुछ अपने घरों में ही छोटे-छोटे बिजनेस चलाते हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही बात होती है — अपने बच्चों को अपनी जमीन के बारे में बताना।
यहाँ के समाचार भी अलग होते हैं। जब कोई ब्राह्मणबाड़िया व्यक्ति न्यूज़ीलैंड में कोई बड़ी उपलब्धि करता है, तो उसकी खबर भारत में भी चलती है। कुछ लोग यहाँ से अपने गाँव के लिए दान भी करते हैं। न्यूज़ीलैंड की सरकार भी इन समुदायों को समर्थन देती है — सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए फंड, भाषा सीखने के कोर्स, और स्थानीय समुदायों के बीच जुड़ाव के लिए मंच।
यहाँ आपको ऐसे ही कई कहानियाँ मिलेंगी — जहाँ एक ब्राह्मणबाड़िया लड़का ऑकलैंड में क्रिकेट खेल रहा है, एक महिला न्यूज़ीलैंड के स्कूलों में हिंदी पढ़ा रही है, या कोई बुजुर्ग अपने बच्चों को बांग्लादेश के गाँव की यादें बता रहा है। ये सब कहानियाँ न्यूज़ीलैंड के नाम से जुड़ी हैं, लेकिन उनकी जड़ें ब्राह्मणबाड़िया में हैं।
इस पेज पर आपको ऐसे ही असली, दिल को छू लेने वाले समाचार मिलेंगे — जो बताते हैं कि एक छोटा सा समुदाय कैसे दुनिया के दूसरे किनारे पर अपनी पहचान बना रहा है।
द्वारा लिखित :
व्यंग्यवर्धन बदलेवाला
श्रेणियाँ :
क्रिकेट
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