मार्गशीर्ष अमावस्या 2025: कब होगा पूजा, क्यों माना जाता है अत्यंत पवित्र?

मार्गशीर्ष अमावस्या 2025: कब होगा पूजा, क्यों माना जाता है अत्यंत पवित्र?

नव॰, 21 2025

द्वारा लिखित : व्यंग्यवर्धन बदलेवाला

मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 को लेकर भारतभर के विश्वसनीय स्रोतों में भिन्नता है — कुछ कहते हैं 19 नवंबर, कुछ 20 नवंबर, और एक स्रोत तो गलती से 4 दिसंबर बता रहा है। ये भ्रम केवल तारीखों का नहीं, बल्कि लाखों लोगों के पितृ संस्कारों के लिए भी एक वास्तविक चुनौती है। जब मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि बदल जाती है, तो परिवारों के लिए पितृ तर्पण का समय भी बदल जाता है। अगर आप अपने पूर्वजों के लिए अंतिम अंजलि देना चाहते हैं, तो ये भ्रम आपकी भावनाओं को भी उलट सकता है।

क्या है सही तारीख? विरोधाभास का सच

Moneycontrol और Economic Times के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि 19 नवंबर 2025 को सुबह 9:43 बजे शुरू होती है और 20 नवंबर को दोपहर 12:16 बजे समाप्त होती है। लेकिन Times of India और Times Now News यह स्पष्ट करते हैं कि जब अमावस्या तिथि 20 नवंबर को समाप्त होती है, तो उसे ही मनाया जाता है — इसे उदय तिथि के नियम से समझा जाता है। यानी, अगर अमावस्या का अंत अगले दिन हो रहा है, तो वही दिन पूजा का दिन होता है। ये नियम किसी नए चीज़ नहीं, बल्कि पुराने पंचांग विज्ञान का हिस्सा है।

दिलचस्प बात यह है कि India TV News ने इसे 4-5 दिसंबर 2025 के रूप में दर्शाया, जो गलत है — शायद एक डेटा एंट्री की गलती। क्योंकि द्रिक पंचांग, InstaAstro और अन्य सभी प्रमुख ज्योतिषीय स्रोत नवंबर की तारीखों को ही सही बता रहे हैं। यहाँ तक कि मुंबई और वाराणसी के पंचांग भी एक ही तारीख की पुष्टि करते हैं।

क्यों है यह दिन इतना खास? भगवद्गीता का संदेश

मार्गशीर्ष अमावस्या केवल एक अमावस्या नहीं, बल्कि एक दिव्य अवसर है। भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता (10.35) में कहा है: "मासानाम् मार्गशीर्षोऽहम्" — "मेरे बीच सभी महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ।" ये एक बयान नहीं, एक शक्ति है। जब कृष्ण खुद किसी महीने को अपना रूप बताते हैं, तो उस महीने की हर तिथि अलग ऊर्जा से भर जाती है। और उस महीने की अमावस्या? वो तो बस अंधेरा नहीं, बल्कि एक गहरा आत्मिक अवकाश है।

पद्म पुराण, स्कंद पुराण और नारद पुराण में इसे "आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली अंधेरी रात" बताया गया है। इस दिन किया गया जाप, तर्पण या दान — सब कुछ तेज़ी से पहुँचता है। जैसे एक चिट्ठी जो सीधे आकाश में उड़ जाए, न कि धीरे-धीरे रास्ता ढूंढे। ये दिन आपके पितृ दोष को ढीला कर सकता है, आपके पूर्वजों के अशांत आत्माओं को शांति दे सकता है।

कैसे करें पूजा? रिटुअल्स का विस्तृत मार्गदर्शन

इस दिन का रिटुअल एक अनुक्रम है — शुद्धि से शुरू होकर दान तक। सुबह नहीं तो दोपहर तक, एक शुद्ध नहाना जरूरी है। अगर गंगा तक जाना मुश्किल है, तो घर पर गंगाजल मिलाकर नहाएँ। फिर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें — "ॐ घृणि सूर्याय नमः" का जाप करें। ये न सिर्फ शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मा को भी जगाता है।

फिर आते हैं भगवान विष्णु की पूजा। Moneycontrol के अनुसार, इस दिन विष्णु की पूजा के बिना पितृ पूजा अधूरी है। तुलसी के पत्ते, फूल, धूप और सफेद भोग चढ़ाएँ। श्री विष्णु सहस्रनाम या चालीसा का जाप करना बहुत लाभदायक है।

पितृ तर्पण के लिए एक तांबे के बर्तन में जल, अक्षत और कुश डालकर आप अपने पूर्वजों के नाम लेते हैं — पिता, दादा, प्रपितामह तक। एक अनिवार्य बात: काले कुत्ते, कौवे और गाय को भोजन देना। कौवा भगवान यम का संदेशवाहक है। गाय मातृत्व की प्रतीक है। और कुत्ता? वो वही है जो अंतिम आत्मा को अपने दिल से जोड़ता है।

क्यों ये दिन आज भी मायने रखता है?

आज के दौर में जब परिवार टूट रहे हैं, जब बच्चे अपने दादा-दादी को भूल रहे हैं, जब लोग आध्यात्मिकता को बाहरी रूपों में ढूंढ रहे हैं — ये दिन एक शांत अवकाश देता है। ये नहीं कहता कि आपको भगवान के दरबार में जाना है। ये कहता है: "अपने पूर्वजों के दिल में जाओ।"

क्या आपने कभी सोचा कि आपके दादा का एक छोटा सा दान, आज आपके जीवन की एक बड़ी बात बन गया होगा? ये दिन आपको याद दिलाता है कि हम सब एक अदृश्य धागे से जुड़े हैं — जो खून नहीं, बल्कि भावनाओं से बुना हुआ है। जब आप किसी गरीब को जूते देते हैं, तो आप अपने पूर्वजों के लिए एक नया कर्म बना रहे होते हैं।

भविष्य क्या है? क्या ये रिटुअल्स बचेंगे?

युवा पीढ़ी इन रिटुअल्स को आधुनिक तरीके से बदल रही है। कुछ लोग अब ऑनलाइन पितृ तर्पण कर रहे हैं। कुछ वीडियो कॉल पर बैठकर अपने दादा के नाम का जाप कर रहे हैं। कुछ ने गाय के लिए डॉग फूड भी देना शुरू कर दिया है। ये बदलाव खराब नहीं — ये जीवित रहने का तरीका है।

लेकिन एक बात अटल है: अगर आप अपने पूर्वजों को याद नहीं करते, तो आप अपने आप को भूल जाते हैं। मार्गशीर्ष अमावस्या केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — जिसका उत्तर हमें अपने दिल में ढूंढना होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मार्गशीर्ष अमावस्या कब मनाई जाती है — 19 नवंबर या 20 नवंबर?

अमावस्या तिथि 19 नवंबर को सुबह 9:43 बजे शुरू होती है और 20 नवंबर को दोपहर 12:16 बजे समाप्त होती है। जब तिथि अगले दिन तक चलती है, तो उस दिन को ही पूजा का दिन माना जाता है — इसे उदय तिथि नियम कहते हैं। इसलिए 20 नवंबर को पूजा करनी चाहिए।

पितृ दोष कैसे दूर करें?

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितृ तर्पण, गंगाजल से नहाना, ब्राह्मणों को भोजन देना और कौवे-गाय-कुत्ते को अन्न देना पितृ दोष के लिए शक्तिशाली उपाय हैं। Economic Times के अनुसार, ये रिटुअल्स अनुशासन, शुद्धि और आत्मिक शांति का संकेत देते हैं।

क्या घर पर भी पितृ पूजा की जा सकती है?

हाँ, बिल्कुल। अगर गंगा नहीं जा सकते, तो घर पर गंगाजल मिलाकर नहाएँ। पितृ तर्पण के लिए तांबे के बर्तन में जल, अक्षत और कुश डालकर अपने पूर्वजों के नाम लें। विष्णु की पूजा और तुलसी चढ़ाना भी घर पर ही कर सकते हैं।

कौवे और कुत्ते को खाना क्यों देना चाहिए?

कौवा यम का संदेशवाहक माना जाता है, और कुत्ता अंतिम आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। इन्हें भोजन देने से पितृ आत्माएँ संतुष्ट होती हैं। ये केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि एक अनुभव है — जहाँ आप अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनते हैं।

मार्गशीर्ष महीना क्यों खास है?

भगवद्गीता में कृष्ण ने कहा है: "मासानाम् मार्गशीर्षोऽहम्" — मैं सभी महीनों में मार्गशीर्ष हूँ। इसलिए इस महीने की हर तिथि, खासकर अमावस्या, आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी होती है। ये एक शांति का महीना है, जो आत्मा को अपने जड़ों से जोड़ता है।

क्या इस दिन व्रत रखना चाहिए?

हाँ, बहुत से स्थानों पर इस दिन व्रत रखा जाता है। कुछ लोग केवल फल और दूध खाते हैं, कुछ निराहार रहते हैं। व्रत नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण का अभ्यास है। इस दिन भोजन का उद्देश्य शरीर को पोषित करना नहीं, बल्कि चेतना को शुद्ध करना है।

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